BA Semester-5 Paper-1 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - १

वैदिक वाङ्मय का सामान्य परिचय

प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर -

वेदों की संख्या चार है। सभी वेदों के पृथक्-पृथक् ब्राह्मण हैं। इनका परिचय इस प्रकार है- ऋग्वेद से सम्बन्धित दो ब्राह्मण हैं - ऐतरेय ब्राह्मण और कौषितकि ब्राह्मण। ऐतरेय ब्राह्मण की काफी प्रसिद्धि है। सर्वप्रथम मार्टिन हाग ने १८६३ ई. में अंग्रेजी अनुवाद के साथ इसका प्रकाशन किया। इसके बाद १८७९ में आफ्रेच्ट ने सायण भाष्य के उद्धरण के साथ एवं संस्करण प्रकाशित किया। ऐतरेय ब्राह्मण में ४० अध्याय हैं और प्रत्येक पाँच अध्यायों की एक पञ्चिका और प्रत्येक अध्याय में कण्डिकाएँ हैं। इस तरह से कुल आठ पंचिका, चालीस अध्याय और दो सौ पचासी कण्डिकाएँ हैं। ऐतरेय ब्राह्मण का मुख्य भाग सोमयाग से सम्बन्ध रखता है। इसके प्रथम और द्वितीय पञ्चिका में एक दिन में सम्पन्न होने वाले 'अग्निष्टोम' नामक सोमयाग में होतृ के विधि-विधानों एवं कर्त्तव्यों का वर्णन है। तृतीय एवं चतुर्थ पञ्चिका में प्रातः सवन, माध्यन्दिन सवन, सायं सवन विधि के साथ अग्निहोत्र का प्रयोग वर्णित किया गया है। इसके साथ ही अग्निष्टोम की विकृतियों - उक्थ अतिरात्र और षोडशी नामक यागों का संक्षिप्त विवेचन है। पंच्चम में द्वादशाह यागों तथा षष्ठ पञ्चिका में सप्ताहों तक चलने वाले सोमयज्ञों एवं उनके होता तथा सहायक ऋत्विजों के कार्यों का वर्णन किया गया है। सप्तम पञ्चिका में राजसूय यज्ञ तथा शुनःशेष का आख्यान उल्लिखित है। अष्टम पञ्चिका ऐतिहासिक है। इसमें प्रथम 'एन्द्रमहाभिषेक इसके बाद चक्रवर्ती राजाओं के अभिषेक का वर्णन किया गया है। भारतीय जातियों का वर्णन ऐतरेय ब्राह्मण में किया गया है। वे प्रमुख हैं- भारतवर्ष की पूर्वी सीमा पर विदेह, दक्षिण में भोज, पश्चिम में नीच्य और अपाच्य, उत्तर में उत्तर कुरु तथा मध्य में कुरु पाञ्चाल लोग राज्य करते थे। सीमावर्ती प्रदेशों में रहने वाली पौण्ड्र, आन्ध्र, पुलिन्द, शबर आदि जातियों से आर्यों का सम्पर्क था। इनके अलावा मत्स्य, कुरु, काशी, खाण्डव आदि देशों का वर्णन किया गया है। सब देवों में श्रेष्ठ इन्द्र को बताया गया है। वे सबसे शक्तिशाली एवं दूर तक पार लगाने वाले हैं। देव ऋण, ऋषि ऋण एवं पितृ ऋण जन्म से ब्राह्मणों पर होते थे। इन तीनों ऋणों का परिशोधन यज्ञ या पुत्रोत्पत्ति के द्वारा होता है। अतः ब्राह्मण को विविध ऋण मोचन के लिए सुन्दरी कन्या से विवाह करना चाहिए क्योंकि नारी ही पुरुष की सखा है। विवाह के अवसर पर जब वर और वधू सात पग एक साथ चलते थे तब सप्तम पग रखने पर वर वधू से कहता था कि इस सप्तम पग में तू मेरी सखा बन। ऐतरेय ब्राह्मण में कहा गया है कि अन्न ही प्राण है, वस्त्र ही परिरक्षा है, सुवर्ण ही सौन्दर्य है। पशु प्राप्ति का साधन विवाह है, पत्नी मित्र है, दुहिता ही दरिद्रता है और पुत्र ही आकाश की ज्योति है। पति ही जाया में प्रवेश कर दशम मास में पुत्र के रूप में प्रकट होता है। नारी का महत्व बताते हुए कहा गया है कि नारी ही पुरुष की अर्द्धांगिनी है जिसकी स्त्री मर गयी है उसे यज्ञ करने का अधिकार नहीं है। इस प्रकार स्पष्ट है कि उस समय नारी का सम्मान अधिक था किन्तु पुत्री का जन्म विपत्ति का कारण माना जाता था। शुनःशेष ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमुख आख्यान है। यह ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के अनेक सूक्तों में दृष्टा ऋषि हैं। इक्ष्वाकुवंशीय राजा हरिश्चन्द्र के कोई सन्तान नहीं थी। नारद के उपदेश से उन्होंने वरुण के पास जाकर व्रत लिया कि यदि मेरे पुत्र होगा तो उसे मैं वरुण देव को अर्पित कर दूँगा। तब राजा के घर एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम रोहित था। किन्तु राजा बलि देने के लिए उसे उपयुक्त न समझ टालता गया और रोहित प्रौढ़ावस्था को प्राप्त हो गया। अन्त में राजा अपने पुत्र को बलि देने के लिए तैयार हो गया किन्तु अवसर पाकर रोहित घर से भाग निकला और जंगलों में इधर-उधर घूमता रहा।

इसी बीच राजा को वरुण के अभिशाप से जलोदर रोग हो गया। यह सुनकर रोहित घर लौट आता है और अजीगर्त ब्राह्मण के पास जाकर उसके पुत्र शुनःशेष को सौ गायें देकर खरीद लेता है। शुनःशेष का पिता अपने पुत्र को बलि देने के लिए तैयार हो जाता है और शुनःशेष यूप में बाँध दिया जाता है। किन्तु शुनःशेष ऐसे अवसर पर देवताओं की स्तुति करता है। जैसे-जैसे वह स्तुति करता गया वैसे-वैसे वरुण का पाश टूटता गया और महाराज हरिश्चन्द्र का रोग भी घटता गया। अन्त में शुनःशेष पासमुक्त हो गया और राजा भी रोगमुक्त हो गया। अन्त में शुनःशेष ने अपने लोभी पिता का साथ छोड़ दिया और विश्वामित्र का दत्तक पुत्र होना स्वीकार किया।

ऋग्वेद से सम्बन्धित दूसरा ब्राह्मण कौषीतकि अथवा शांखायन है। यह शांखायन शाखा का ब्राह्मण, है, इसलिये इसे शांखायन ब्राह्मण कहते हैं। इसका प्रथम सम्पादन १८८७ में लिएण्डर ने किया था। कौषीतकि ब्राह्मण में तीन अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में ५ से लेकर १७ तक खण्ड हैं। कुल खण्डों की संख्या २२६ है। प्रथम छः अध्यायों में पाकयज्ञ अर्थात् अग्निहोत्र, अग्न्याधान, दशपौर्णमास और ऋतुयज्ञ का वर्णन है। सात से तीस अध्याय में सोमयाग का वर्णन है। अन्तिम अध्याय में चातुर्मास्य का वर्णन है किन्तु सोमयाग प्रधान विषय है। इसका प्रतिपाद्य विषय ऐतरेय ब्राह्मण के समान है। ऐतरेय ब्राह्मण का मुख्य भाग सोमयाग से सम्बन्ध रखता है अतः इस ग्रन्थ में भी सोमयाग ही प्रधान विषय है। इसका प्रतिपाद्य विषय ऐतरेय ब्राह्मण के समान है। ऐतरेय ब्राह्मण किसी एक काल की तथा किसी एक व्यक्ति की रचना नहीं है जबकि कौषीतकि ब्राह्मण एक व्यक्ति की रचना प्रतीत होती है। इसके प्रधान देवता कौषीतकि ऋषि थे।

यजुर्वेद के ब्राह्मण की दो शाखाएँ हैं -

(i) कृष्ण यजुर्वेद और (ii) शुक्ल यजुर्वेद।

कृष्ण यजुर्वेद एवं गद्यात्मक एवं पद्यात्मक दोनों विनियोगों का साथ है जबकि शुक्ल यजुर्वेद पद्यात्मक है। कृष्ण यजुर्वेद की काष्क एवं मैत्रायणी संहिताओं के ब्राह्मण तो संहिताओं में सम्मिलित हैं। कष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा का ब्राह्मण तैत्तिरीय ब्राह्मण है। तैत्तिरीय ब्राह्मण का प्रथम संस्करण १८६० में कलकत्ता में प्रकाशित हुआ था। तैत्तिरीय ब्राह्मण में कुल तीन काण्ड हैं। प्रथम काण्ड में अग्न्याधान, गवामयन, वाजपेय, राजसूय, सोमयाग तथा नक्षत्र वेष्टि का वर्णन है। द्वितीय काण्ड में अग्निहोत्र, सौत्रामणि, बृहस्पति सब आदि नानाविध सत्रों का वर्णन है। इनमें अनेक ऋचाएँ ऋग्वेद से संग्रहीत हैं। तीन काण्ड में नक्षत्र वेष्टि का वर्णन विस्तार के साथ हुआ है। कृष्ण यजुर्वेद का मैत्रायणी संहिता का कोई स्वतन्त्र ब्राह्मण नहीं है। किन्तु उसका चतुर्थ अध्याय ही ब्राह्मण माना जाता है। मैत्रायणी ब्राह्मण में तीन अध्याय हैं। शुक्ल यजुर्वेद से सम्बद्ध ब्राह्मण का नाम शतपथ ब्राह्मण है। इसमें सौ अध्याय होने के कारण इसका नाम शतपथ पड़ा है। शुक्ल यजुर्वेद की दो शाखाएँ हैं - काण्व और माध्यन्दिन और दोनों के ब्राह्मणों का नाम शतपथ है। माध्यन्दिन शाखीय शतपथ ब्राह्मण का प्रथम प्रकाशन बेवर ने १८५५ ई. में किया है।

सामवेद से सम्बन्धित आठ ग्रन्थ हैं जिनका वर्णन सायस ने इस तरह से किया है-

१. प्रौढ़ ब्राह्मण २ षड्विश ब्राह्मण ३. सामविधान ब्राह्मण ४. आर्षेय ब्राह्मण ५ देवताध्याय ६. उपनिषद ब्राह्मण ७. संहितोपनिषद् ब्राह्मण और वंश ब्राह्मण।

इसकी दो शाखाएँ हैं- एक ताण्डि शाखा तथा दूसरी जैमिनी शाखा। ताण्डि शाखा से सम्बद्ध होने के कारण इसका नाम ताण्ड्य ब्राह्मण है। पच्चीस अध्यायों में विभक्त होने के कारण इसे पञ्चविश ब्राह्मण भी कहते हैं। सामवेद को ब्राह्मणों में प्रधान तथा विशाल होने के कारण इसे प्रौढ़ ब्राह्मण तथा महाब्राह्मण भी कहते हैं। षड्विश ब्राह्मण पञ्चविश ब्राह्मण का ही एक परिशिष्ट भाग है। इसका षड्विश नाम छब्बीसवाँ अध्याय का बोधन होने से प्रतीत कराता है कि इसका विषय पञ्चविश ब्राह्मण का पूरक है। षड्विश ब्राह्मण का पञ्चम प्रपाठक ही अद्भुत ब्राह्मण है। अलौकिक अद्भुत घटनाओं के कारण इसका नाम अद्भुत ब्राह्मण पड़ा। सामविधान ब्राह्मण सामवेद का अन्यतम ब्राह्मण है। इसकी विषय-सामग्री अन्य ब्राह्मण ग्रन्थों में वर्णित विषय सामग्री से सर्वथा भिन्न है। आर्षेय ब्राह्मण सामवेद से सम्बद्ध ब्राह्मण है। इस ग्रन्थ का प्रथम प्रकाशन बर्नेल द्वारा १८७६ ई. में किया गया।

अथर्ववेद से सम्बन्धित केवल एक ब्राह्मण 'गोपथ ब्राह्मण' है। गोपथ ब्राह्मण अथर्ववेद का एकमात्र ब्राह्मण होने से इसमें अथर्ववेद का महत्व वर्णित किया गया है। इसका महत्व इसलिए और बढ़ गया है कि इसमें अथर्ववेद से ही तीनों वेदों एवं ओम् की उत्पत्ति बतायी गयी है और ओम् से समस्त संसार की उत्पत्ति वर्णित है। गोपथ ब्राह्मण के भौगोलिक अध्ययन से ज्ञात होता है कि उस समय ब्राह्मण संस्कृति कुरु, पाञ्चाल, कोशल, साल्व, मत्स्य, वशी, उशीनर, अंग-मगध आदि प्रदेशों में फैल चुकी थी। गोपथ ब्राह्मण में देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण इन तीनों का उल्लेख है। गोपथ ब्राह्मण में शब्दों का निर्वचन भाषाशास्त्र की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। गोपथ ब्राह्मण वैदिक साहित्य में सबसे परवर्ती रचना मानी जाती है। यास्क ने निरुक्त में गोपथ ब्राह्मण के कुछ अंशों को उद्धृत किया है। इससे उतना ही स्पष्ट है कि गोपथ ब्राह्मण यास्क के निरुक्त से पूर्ववर्ती रचना है। गोपथ ब्राह्मण में शिव का वर्णन किया गया है, जिससे यह मालूम पड़ता है कि यह ब्राह्मण, ब्राह्मण काल की अपेक्षा वेदोत्तर काल की रचना है। गोपथ ब्राह्मण में बहुत से शब्दों की व्युत्पत्ति प्राप्त है जो भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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